Wednesday, December 14, 2016

Nazmeen Khan- Why I'm working on gender/with PFP

प्रतीति सफर में मैने शुरुआत वहाँ से की जहाँ मुझे लोगो से बहुत डर लगता था,मझे लगता था कि सभी अकड़ू और लड़ने वाले होते हैं कोई किसी से सही से बात नही करता होगा, सही से किसी के सवालो के जवाब भी नही देते होंगे , किसी से भी कुछ भी पूछने पर मज़ाक बनाते होंगे, इस तरह के सवाल मेरे मन में आते थे, बहार किसी पर भी भरोसा करना आसान नही था,सबको एक ही निगाह से देखती थी,लेकिन जब मैने अपनी पहली क्लास ली तो मझे काफी कुछ पता लगा की ऐसा क्यों होता है ? क्योंके मेने अपने मन में कही न कही जेंडर का खौफ बैठा रख्खा था | प्रतीति ने मेरे अंदर से इस खौफ को निकाला । इस में मेरे सभी सवालो के जवाब मिले यहाँ तक के लोग अपनी मन घडत कहानियां खुद बना लेते हैं ये भी पता लगा | प्रतीति में एक्टिविटीज़ के ज़रिये समझाया गया जो समझ में भी आसानी से आ रहा था जैसे देर रात तक बहार नही जाना और लड़कियों को घर पर ही रहना चाहिए बहार नही जाना चाहिए यह सब हमारे साथ जेंडर की वजह से होता है। साथ ही साथ लोगो ने खुद से ये मान्यताएँ बनाई हैं जो हम अपने ऊपर लगते हुए देखते हैं।क्लास के वक़्त ऐसा लगा की हाँ ये वाकई में होता होगा की लड़कियों पर या लड़को पर कुछ बातें ज़बरदस्ती डाली जाती हैं ये कह कर की ये हमारे बड़े बुज़ुर्ग भी क्या करते थे या ये सदियो से चला आ रहा है। 


इस बीच मझे इस बात का भी पता चला की ये मान्यताएँ आई कहा से हैं ? तो ये लोगो ने खुद से बनाई हूँ जैसे:- ये कहा जाता है की लड़की घर की इज़त होती है,लेकिन मेरा मानना है कि लड़की नही "घर के लोग घर की इज़ात होते हैं"।
 
तो इस तरह की मान्यताएँ लोगो ने बना रखी हैं।धीरे धीरे ये सच महसू होने लगा की हाँ ये मान्यताएँ बनाई गई हैं। तभी मेने सोच लिया था कि इस तरह की मान्यताओं को मझे हटाना है।इसी लिए मेने प्रतीति का हिस्सा बनने के लिए अप्लाई किया क्योंके मझे इससे काफी कुछ सीखने के लिए मिला।

अब में इस सफर को आगे तक ले जाना चाहती हूँ ताके लोगो को इस बारे में बता सहकूँ की जैसा हम सोचते हैं वही सही नही होता बहुत बार हमें ऐसा लगता है कि जो हम सोच रहे हैं वही सच है लेकिन ऐसा नही होता हर कोई अलग होता है कोई एक जैसा नही होता । इसी तरह लोग लड़के और लड़कियों में जो फर्क करते हैं ये भी सही नही है ये उन्होंने अपने दिमाग में मान्यता बना रखी हैं कि लड़कियाँ घर की इज़्ज़त होती हैं,लड़के घर के वारिस या लडकियों का घर से बहार जाना थीक नही,उनकी काम उम्र में शादी करना या वो घर को चला नही सकती,ये सब मान्यताएँ है बल्कि इतनी ही नही और भी बहुत सी हैं जो सभी फॉलो करते हैं।
 
बस ऐसी मान्यताओं को हटाना चाहती हूँ में जो असल में हैं ही नही। प्रतीति के दौरान मेने काफी जगहों पर जाकर लोगो से बात की और जेंडर जैसे मसलो को सुलझाने की कोशी की। मेने अपने सभी दोस्तों को इस बारे में बताया और जेंडर जैसी बड़ी परेशानी को दूर करने के लये आगे कदम बढ़ाया। मेरे लिए लड़का लड़की एक सम्मान हैं इनमे कोई फर्क नही। मैं इसी बदलाव को अपनी ज़िन्दगी, परिवार,महो्ल्ले और अपने शहर में करना चाहती हूँ जिसकी शुरुआत मेने अपने इस प्रतीति के सफर से शुरू कर दी है।

Friday, December 9, 2016

PFP meets Nari Utthan and Svackshee – two organizations working on women livelihoods in Alwar

The aspirant of the night is alone, the work merely a bubbly tale; a journeyman funneling ideas into gemstones
Teachers call it copy, we call it Teamwork
Since PFP has started working in Alwar, it has been an out an out new experience for our team – of knowing about new organizations, of understanding new ground realities and of meeting new people with diverse perspectives. One such recent experience has been the staff-training workshop conducted with participants from Nari Utthan and Svackshee in November. These participants, both women and men work on issues of women empowerment, women livelihoods and girls education and primarily work in their own communities.

Our promise was to deliver value before profit
Our facilitators tried to create space for the participants to not only learn about new concepts around gender, but also for them to reflect on their own beliefs, attitudes and fears around the social change that they are working towards. The participants could identify that they need to embody the change that they are propagating and it was also clear to them that this is a process that requires much self-work and effort. Some participants showed enthusiasm about adopting the values of empathy, non-violence and gender peace in their personal life and professional activities. One of the participants, Rashmi Singhal who has been working on health for the last decade shares her experiences here -

Reality and the imagination are intertwined, they are very similar
दिनांक 22/11/2016  से 24/11/2016 तक जेंडर पर ट्रेनिंग की गई। यह ट्रेनिंग मेरे लिए बेहत ही जानकारीपूर्ण रही इस ट्रेनिंग में मैंने जेंडर और सेक्स में अंतर, समाजीकरण, सामाजिक शक्ति, समानुभूति और हिंसा, समाज में उपलब्ध मान्यताएं जेंडर पीस के बारे में धीरे-धीरे समूहों में चर्चा की खेलों के माध्यम से जानकारी उपलब्ध करी सच और सोच के बारे में भी विस्तृत जानकारी मिली। पहले कई जेंडर ट्रेनिंग में मेरी सहभाग्यता रही है और जेंडर पर भी ट्रेनिंग दूसरे NGO के माध्यम से प्राप्त करी  है परंतु PFP संस्था द्वारा इतनी गहराई में जेंडर के बारे में जानकारी दी जो अन्य संस्थाओ की ट्रेनिंग के दौरान हमें प्राप्त नहीं हुई। जो भी इन तीन दिनों में मुझे सीखने को मिला उसे अपने जीवन में मैं उतारूंगी और मेरे फील्ड में भी लोगों को जेंडर के बारे में जागरूक करुँगी पिछले इन तीन दिनों में बहुत सीखने को मिला। मैं बहुत खुशनसीब हूँ कि मैंने इस ट्रेनिंग में सहभागी बन कर भाग लिया। मैं आभारी हूँ PFP संस्था की जिसने मुझे जेंडर अन्य टॉपिक्स पर भी विस्तृत जानकारी दी|
If I have seen further than others, it is by standing upon the shoulders of giants

मैंने PFP की ट्रेनिंग से यह सीखा कि हिंसा सहना और करना दोनों ही गलत है। और यह भी पता चला कि किन-किन बातों से हम हिंसा जाने अनजाने में भी चाहते हुए भी कर रहे हैं | इसके बारे में पता चला तो यह प्रण लिया कि अपने जीवन में हिंसा ना करुँगी ना सहूंगी मैंने लड़का-लड़की में जो सामाजिक अंतर था उसके बारे में भी जाना और मैंने अपने बच्चों को भी बताया कि अगर तुम्हें कोई भी लड़का लड़की होने का सन्देश कहीं से भी मिलता हो तो उसे रोकना चाहिए | मेरे लिए लड़का लड़की में कोई अंतर नहीं है दोनों को ही बराबर मौका मिलता हो | मैं इसी बदलाव का प्रयास अपने परिवार में करुँगी और समाज में भी जागरूकता का काम करुँगी |

None of us is as smart as all of us
It is a long way to go for us to create a generation of changemakers who not only work towards development of these communities but also enable transformation of discriminatory beliefs that lead to violation of human rights on an everyday basis. But it is a beginning that we have reached places where the term gender is often misunderstood, and where the notion of equality if often only mythical. It gives us hope that women and men are coming together in our spaces to talk about systems that affect all of us.


We will meet the participants again in a few weeks and are looking forward to hear their stories, and share some with you !