Friday, October 9, 2015

The journey thus far - Deepak speaks

Deepak Kumar Jha

Journalist, poet, blogger and theater artist, Deepak shines as a beacon of creativity, constantly enthralling the rest of us with his beautiful Hindi poetry.
"I am a student of nature & this beautiful world. I don't want to use this life casually or with some purpose, rather I want to live this life to learn a lot, to explore myself and everything around myself. I'll not accept anything without examining the truths and the lies. I want to live with love, with success and failure."

Deepak is among the 20 fellows selected for the Pratiti journey in Delhi.
Find below some philosophical musings regarding his experiences thus far:



शेक्सपीयर के हैमलेटसे लेकर आज तक का सबसे बड़ा सवाल रहना है या नहीं रहना है।सपनों के सुंदर गुब्बारे, आश्वासनों का लेमनचूस, दिलफरेब दिलासों के बीच दुनिया की तमाम प्रार्थनाओं से बाहर पीड़ा के पथ पर रेंगते हुए सांसें लेना। मर नहीं जाना ही जीना है तो इस वक्त दुनिया में अनगिनत लोग जी रहे हैं। हर बात पर जो जीकहते हैं और जो जी न लगने पर भी जिए जा रहे हैं।


प्रेम जी की इन्हीं पंक्तियों के बीच जिंदगी के डीटीसी की दौड़ती बस कब प्रतीति के अड्डे पर जा रूकी पता ही नहीं चला। किसी ने हाथ दिया और रुक गया। जैसे चलती बसें अक्सर कहीं भागती भीड़ में खुद को ढूंढ़ने के लिए रोक लिया करती हैं। चौबीस सालों की उठा-पटक ने हालत जर्जर कर दी थी। मुश्किल था। चमचमाती कतार में खुद को खड़ा कर पाना। बड़ा गुमान भी था। सीने पर स्याह निशान लिए जिए जाने का। पर यहां रुका तो लगा जैसे इस अड्डे के लोगों ने तो त्रासदी झेली है। अपनों की। रिश्तों की। चुप रहकर। जहर का घुंट पी कर। वर्षों से। जिस्म पर दाग ऐसे की जख्म शर्मिंदा हो जाएं। तुम सब को मेरा सलाम। इसलिए नहीं की तुम जिगर वाले हो। बल्कि इसलिए कि तुमने जिगर को जिगर समझा है। क्योंकि तुमने धधकते आग में धड़कते हुए दिल को सुना है। इसलिए दिल में उतर गए हो। ताउम्र साथ रहोगे जबतक बस चलती रहेगी। तुम लोगों के साथ मैं सवारी भी हो गया हूँ – पहचान का। उत्तरदायी हो गया हूँ – समाजिक हिसाब का। पता नहीं तुम्हारा झंडा अपने उपर लगा पाउंगा कि नहीं पर हाँ, हार्न जरुर बजाउंगा  ‘No horn plz’ होने के बावजूद। समझदार लोगों के लिए पूरी दुनिया खुली हुई है। जहाँ समझदारी बिकती है और तौली जाती है। पर समझदारों के बीच रहकर भी अगर आप पहचान की बात कर नासमझी दिखाते हैं तो एक बार इस अड़डे पर जरुर रुकिए। फेसबुक की तरह किसी का टाईमलाईन देख लेने जाने जैसा ही। यकीन मानिए फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजे बिना दिला मानेगा नहीं। स्टेटस बनाने के लिए एक बार अपना स्टेटस चेंज करके देखिए।

मैं बहुत दिनों से बहुत दिनों से
बहुत-बहुत-सी बातें तुमसे चाह रहा था कहना
उपमा संकतो में
रूपक में, मौन प्रतीकों में
मुक्तिबोध


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